प्रीति करो
प्रीति करो…(चौपाई)
प्रीति करो एकाकृति हो कर।
एक समान मुखाकृति बन कर।।
रहो मिटाते नित अंतर को।
विकसित कर मानव सुंदर को।।
दुविधाओं को नष्ट करो अब।
भय माहौल विनष्ट करो अब।।
शंकाओं को दूर भगा दो।
समाधान का भाव जगा दो।।
रहें निशंक यहाँ सब प्राणी।
विकसित हो संस्कृति कल्याणी।।
लहरें उठें स्नेह भावों की।
झाँकी हो सुंदर गाँवों की।।
प्रीति सुधा का नित्य पान हो।
परम प्रीति में सिद्ध ध्यान हो।।
रहे प्रीति के प्रति आकर्षण।
मिट जाये जीवन संघर्षण।।
प्रीति लक्ष्य हो केवल अपना।
प्रीति बिना सब कुछ हो सपना।।
सिर्फ प्रीति का गान चाहिये ।
प्रीतियुक्त जलपान चाहिये।।
सदा प्रीति ही वंदनीय हो।
प्रीतिशून्य नर निंदनीय हो।।
प्रीति प्रधान मनुज अति पावन।
जहाँ प्रीति तँह सब मनभावन।।
Mahendra Bhatt
16-Dec-2022 05:01 PM
बहुत ही सुन्दर
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